செவ்வாய், ஜனவரி 26, 2016

मनमाना

उम्र बढ़ रही है ;
देख रहा हूँ समाज को,
लूटनेवाले लूटते रहते हैं ;
जिनको लुटेरा कहते हैं ,
वह चुनाव जीतते जाते हैं;
उनकी काबिलियत के सामने
नेक ईमानदारी त्यागी
अति तुच्छ नज़र आते हैं,
लूटते तो देश को ,
समाज को ,
दिल को ,
आज ऐसे प्रशिक्षण में लगे हैं
औसत छात्र ;धनी लडकी का पीछा करो ,
काम बन जाएँ तो जिन्दगी आराम;
नायक आजकल के चित्रपटों में
आरम्भ से दरमियान तक
बदमाश ही होते हैं;
फिर लडकी के प्यार में बदमाशी तज बैठते;
पुलिस अधिकारी,मंत्री सब के
अन्याय से फिर क़ानून नायक हाथ में लेता;
पूजनीय नायक बन जाता;
साहित्य समाज का है दर्पण;
वीर गाता कालों में राजा राजकुमारी का करता है
अपहरण;
भक्ति काल में भी वही ;
रावण वध ,कीचकवध ;
ये तो समाज का दर्पण.
राजा के पत्नियां तीन माननीय ;
नापुम्सकों की पत्नी के लिए मंत्रोच्चारण
या ऋषि मुनि का सम्भोग;
आजकल के आश्रमों में भी वही;
धन जुड़ जाएँ ,पद मिल्जायें तो
मनमाना.
यह तो साहित्य सृजन से आजतक जारी.

கருத்துகள் இல்லை: