புதன், பிப்ரவரி 22, 2012

tamilanaddu aur hindi --part-2.

तमिलनाडु में कई हिंदी प्रचारक अपनी इच्छा से हिंदी प्रचार का कार्य कर रहे हैं.कम शुल्क,ज्यादा सेवा.
जिंदगी भर गरीबी.सभा के परीक्षा सचिव को  र.क. नरसिम्हन जी की सच्ची सेवा के लिए पहली बार उनको pension  मिला ,रूपये ५०/; उनकी धर्म पत्नी अत्यंत ख़ुशी से ,आत्मा तृप्ति से मुझसे कहा;ऐसे ही सभा के कार्य कर्ता और प्रचारक महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्य कर रहे हैं


.केद्र सरकार भी शहीद प्रचारक जो सच्ची सेवा कर रहे हैं,उनको प्रोत्साहन न देकर कोई भी ठोस काम न करनेवाले  हिंदी अधिकारी और अन्य लोगों को करोड़ों रूपये खर्च कर रही है. लाखो लोगों को हिंदी सिखाने वाले बुरी हालत में है
.सरकारी दफ्तर में काम करनेवाले पढ़ें या न पढ़ें,वहां एक हिदी अधिकारी हैं.उनका एक महीने का वेतन सभा पचास प्रचाराकोंको देकर काम ले रही है.
बुढापे में प्रचारक कष्ट उठा रहे  हैं.
 उनसे ही पैसे वसूल  करके सम्मान करती है. सरकार को इस बात पर अधिक ध्यान देना चाहिए,.लूटनेवाले लूटते हैं. सच्ची सेवा करनेवाले .../?/यही नीति-धर्म है.
राष्ट्र भाषा के विरुद्ध बस /रेल जलाने वाले त्यागी बनकर तमिलनाडु  सरकार से त्यागी की डिग्री और pension पा रहे हैं.
 स्वार्थ केंद्र सरकार के शासक दल अपनी कुर्सी  के हिफाजत केलिए कालाधन के नाम सूची या कार्रवाई नहीं लेती.और राष्ट्र  भाषा पर ध्यान नहीं देती.देश को प्रधान न मानना ही कई भ्रष्टाचार का मूल है. शिक्षा आजादी  के बाद भी स्थायी   सिद्धांता लेकर नहीं चलती. आज कल बिन पैसे की  अच्छी शिक्षा असंभव है.

HINDI IN TAMILNAADU.PART;1

मैं  अपनी सोलह साल की उम्र से तमिलनाडु में हिंदी प्रचार कार्य कर रहा हूं.सैंतालीस साल तक मेरा संपर्क दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा ,चेन्नई से रहा.१९६७ से १९७७ तक तमिलनाडु तिरुच्ची  सभा से रहा.मेरे लिए ये 
दस साल  का अनुभव आगे के कार्य क्षेत्र में अपने दायरे में तरक्की का साथ दिया.
मेरे हिन्ढी क्षेत्र के प्रवेश मेरी माँ की प्रेरणा है.दूसरा है जीविकोपार्जन.सत्रह साल की उम्र में  राष्ट्र भाषा परीक्षा उत्तीर्ण  होकर  हाई स्कूल का अध्यापक 
बना.वेतन  ६०+९०+१०=१६०.हर महीना.१९६७-६८ एक साल.जब मेरा 
प्रवेश हिंदी क्षेत्र में हुआ ,तमिलनाडु में हिंदी  के विरुद्ध आन्दोलन 
चल रहा था.स्कूलों  में द्वि भाषा सूत्र लागू हुआ. जिन हिंदी अध्यापकों की शैक्षिक योग्यता कम थी,उनकी नौकरी चली गयी.कई हिंदी अध्यापक की स्थिति दयनीय बन गयी.
खेद की बात थी कि नौकरी की आशा में प्रचक प्रशिक्षण पाकर बाहर आये 
कृष्णमूर्ति  नामक प्रचारक ने आत्मा ह्त्या कर ली.यह  वह  समय  था  ,जब हिंदी प्रचारक  हिंदी के नाम लेकर बाहर आने पर अपमान ही होगा.संविधान के पक्ष लेकर संपर्क भाषा के प्रचारक डर रहे थे,संविधान के उल्लंघन में जिन लोगों ने बसें ,रेलें  चलाई,सार्वजनिक क्षेत्रों को बर्बाद किया, वे सम्मान के पात्र बने.प्रातीय सरकार ने उन्हें "भाषा त्यागी"की उपाधि दी.उनको हर महीने पेंसन देने लगी.भारत में केवल तमिलनाडु के स्कूलों में मात्र हिंदी की पढ़ाई नहीं.यही भारत संविधान की एकता नीति.