புதன், ஜூலை 06, 2016

मुकद्दमा

कल   की  बात  नहीं, कल  होने  की बात  नहीं,

बात है,   खलों  की, गला काटने की  बात है,

घर से निकली चौबीस साल की    श्वेता,

एक    अर्द्धशिक्षित  बेकारी  युवक,

रोज  करता था पीछा .प्यार की बातें कही,

श्वेता  की बड़ी गलती   ,अपने माता-पिता से  नहीं बताई.

युवक तो   खूनी ग्रामीण , समझ गया,  मूक प्यार.

अंत में जोर देकर प्यार करने  को कहा,

उसने   इनकार किया तो  थप्पड़ मारा, भीड़ देखती रहीं,

अगले    दिन आया  बड़ी तलवार  लेकर,

अति   भीड़  सब  के देखते देखते गला काट कर बाख निकला.

घटना स्थल के सब केसब अवाकखड़े रहे.

किसी    में  साहस नहीं  उसको पकड़ने   या उसकीफोटो खींचने,

युवती के प्राण पखेरू रेलवे स्टेशन में
तत्क्षण ही उड़ गए.

ढाई घंटे तक शरीरपड़ा रहा,
बाद में पुलिस आयी.

रेलवे पुलिस या चेन्नई पुलिस निश्चय करके

खूनी को  चेन्नई पुलिस ने  पकड़ लिया.

पर   खूनी  का वकील कहता है,

खूनी वह नहीं,

उसको पकड़ने पुलिस गयीतो

गले में चोट पहुंचाई, वह युवक अपराधी ही नहीं,

न जानीउसकी पृष्ठ भूमी है क्या?

आँखों देखी गवाह के होते,

वकील कोयह दुस्साहस कैसे?

सच्ची घटना,

पर  अपराधी को बचाने की कोशिश.

दिल दहलानेवाली घटना,

अपराधी पकड़ा गया, पर

वकील निर्दयी  ,

यही भारतीय क़ानूनव्यवस्था.

पाँच साल से  ज्यादा मुकद्दमा चलेगा,

गवाहीमर जायेंगे या बयान बदलेंगे.

साफ  साफ   बाल बाल अपराधी बच   जाएगा.

लव जिहाद हो
या निम्न  जाति  उच्च    जातियों  पर  का
बदला हो 

पता   नहीं,
वकील अपराधीका हो गया
बड़ा अपराधी.!!