புதன், மார்ச் 09, 2016

ஹிந்தி ப்ரசாரக்

खडी बोली हिंदी  का विकास ।
भारतेंदु  काल से
तेजोन्नती  सम न किसी भाषा  का विकास।
मोहनदास करमचंद गाँधी सम न कोई दूरदर्शी।
हम तो हिंदी विरोधी के प्रांत के वासी।
न सरकार का प्रोत्साहन  न केंद्र का न प्रांत।
हमें  तो सिर्फ गाँधी आजकल कहने न आता ।
कई नकली गाँधी निकले हैं।
पूज्य मोहनदास करमचंद गाँधीजी को नमन
जिनके कारण विरोधी वातावरण में भी हजारों प्रचारक
  हिंदी के प्रचार प्रसार में लगे हैं
धन्य है इस सम्मेलन के अवसर पर
कृतग्ञ ग्ञापन का अवसर मुख पुस्तिका द्वारा मिला।
कवि सम्मेलन की सफ ता पर प्रकट करते हैं  अानंद मन का।