வியாழன், மார்ச் 21, 2013

கந்தர் அநுபூதி / कंदर अनुभूति

கந்தர் அநுபூதி / कंदर अनुभूति 

5.மகமாயை களைந்திட வல்லபிரான் 

முகம் ஆறும் மொழிந்தும் ஒழிந்திலேன் !
அகம்,ஆடைமடந்தையர் என்று அயரும் 
ஜகமாயை யுள் நின்ருதயங்குவதோ.

हे कार्तिक! बड़ी-बड़ी माया से हमारे रक्षक!
बार-बार स्मरण करता रहता हूँ।
षणमुख!षणमुख !जपता  रहता हूँ।
फिर भी अहम् ,वस्त्र ,नारी आदि की जगत माया से 
बचने असमर्थ हूँ।।

कन्दरनुभूति

 तमिल के भक्त कवी अरुणगिरिनाथर   अपने प्रारम्भिक यवानावस्था में  वेश्यागमन के कारण तीव्र रुग्णावस्था में पड  गये। 
जीवन से हतोत्साह होकर आत्म-हत्या करने 
तिरुवन्नामलै  मंदिर के गोपुर से कूदे  तो 
भगवान ने उन्हें बचाया और ज्ञान का सन्देश दिया। उसके बाद उन्होंने कई भक्ति के ग्रन्थ लिखे .

उनमे यह कन्दरनुभूति प्रसिद्ध है. 

வளை  பட்ட கை மாதொடு மக்கள் எனும் 
தளைபட்டு  அழியத் தகுமோ தகுமோ 
கிளைபட்டு எழுசூர் உரமும் கிரியும் 
தொலை பட்டு உருவத்தொடு  வேலவனே!

हे कार्तिक! 
अपने नाते-रिश्ते के सहित ,
आया  था असुर सूर्पद्मन!

तूने अपने शूल से 

उसको और क्रौंच गिरी को 

टुकड़े किये थे।-

लेकिन मेरा विनाश 
चूड़ियाँ पहनीं 
नारियों के बंधन में 
हो रहा है!! 
ऐसा विनाश होना उचित है किया!