मैं अपनी सोलह साल की उम्र से तमिलनाडु में हिंदी प्रचार कार्य कर रहा हूं.सैंतालीस साल तक मेरा संपर्क दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा ,चेन्नई से रहा.१९६७ से १९७७ तक तमिलनाडु तिरुच्ची सभा से रहा.मेरे लिए ये
दस साल का अनुभव आगे के कार्य क्षेत्र में अपने दायरे में तरक्की का साथ दिया.
मेरे हिन्ढी क्षेत्र के प्रवेश मेरी माँ की प्रेरणा है.दूसरा है जीविकोपार्जन.सत्रह साल की उम्र में राष्ट्र भाषा परीक्षा उत्तीर्ण होकर हाई स्कूल का अध्यापक
बना.वेतन ६०+९०+१०=१६०.हर महीना.१९६७-६८ एक साल.जब मेरा
प्रवेश हिंदी क्षेत्र में हुआ ,तमिलनाडु में हिंदी के विरुद्ध आन्दोलन
चल रहा था.स्कूलों में द्वि भाषा सूत्र लागू हुआ. जिन हिंदी अध्यापकों की शैक्षिक योग्यता कम थी,उनकी नौकरी चली गयी.कई हिंदी अध्यापक की स्थिति दयनीय बन गयी.
खेद की बात थी कि नौकरी की आशा में प्रचक प्रशिक्षण पाकर बाहर आये
कृष्णमूर्ति नामक प्रचारक ने आत्मा ह्त्या कर ली.यह वह समय था ,जब हिंदी प्रचारक हिंदी के नाम लेकर बाहर आने पर अपमान ही होगा.संविधान के पक्ष लेकर संपर्क भाषा के प्रचारक डर रहे थे,संविधान के उल्लंघन में जिन लोगों ने बसें ,रेलें चलाई,सार्वजनिक क्षेत्रों को बर्बाद किया, वे सम्मान के पात्र बने.प्रातीय सरकार ने उन्हें "भाषा त्यागी"की उपाधि दी.उनको हर महीने पेंसन देने लगी.भारत में केवल तमिलनाडु के स्कूलों में मात्र हिंदी की पढ़ाई नहीं.यही भारत संविधान की एकता नीति.
दस साल का अनुभव आगे के कार्य क्षेत्र में अपने दायरे में तरक्की का साथ दिया.
मेरे हिन्ढी क्षेत्र के प्रवेश मेरी माँ की प्रेरणा है.दूसरा है जीविकोपार्जन.सत्रह साल की उम्र में राष्ट्र भाषा परीक्षा उत्तीर्ण होकर हाई स्कूल का अध्यापक
बना.वेतन ६०+९०+१०=१६०.हर महीना.१९६७-६८ एक साल.जब मेरा
प्रवेश हिंदी क्षेत्र में हुआ ,तमिलनाडु में हिंदी के विरुद्ध आन्दोलन
चल रहा था.स्कूलों में द्वि भाषा सूत्र लागू हुआ. जिन हिंदी अध्यापकों की शैक्षिक योग्यता कम थी,उनकी नौकरी चली गयी.कई हिंदी अध्यापक की स्थिति दयनीय बन गयी.
खेद की बात थी कि नौकरी की आशा में प्रचक प्रशिक्षण पाकर बाहर आये
कृष्णमूर्ति नामक प्रचारक ने आत्मा ह्त्या कर ली.यह वह समय था ,जब हिंदी प्रचारक हिंदी के नाम लेकर बाहर आने पर अपमान ही होगा.संविधान के पक्ष लेकर संपर्क भाषा के प्रचारक डर रहे थे,संविधान के उल्लंघन में जिन लोगों ने बसें ,रेलें चलाई,सार्वजनिक क्षेत्रों को बर्बाद किया, वे सम्मान के पात्र बने.प्रातीय सरकार ने उन्हें "भाषा त्यागी"की उपाधि दी.उनको हर महीने पेंसन देने लगी.भारत में केवल तमिलनाडु के स्कूलों में मात्र हिंदी की पढ़ाई नहीं.यही भारत संविधान की एकता नीति.
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