छेद में से घुस आते। खुश होते कुटी के लोग।
झोमपडी के लौगौं के आत्मार्थ खुशी ।
वातानुकूलित कमरे के अमीरौं में नहीं।
नींद की गोलियाँ ।मधु के बौतल।
बडे पलंक। गद्दीदार बिस्तर।
स्वाभाविक आनंद नहीं ।
प्राकृतिक नींद नहीं।
प्राकृतिक शांति नहीं।
प्राकृतिक विश्राम नहीं।
पैसै के प्रेम में पैशाचिक प्रवृत्तियाँ।
पल पर भी चैन नहीं ।
छेद में घुसने के प्रकाशित आनंद नहीं।
गाली दो पीटो मारो न दो खाना।
साथ न छोडूँ के आनंद का भाव
आलीशान महलों में नहीं ।
छेद में घुसने का आनंद
प्राकाश के
वर्णन
तुल्य कोई शब्द नहीं।
उसी में बनता जग जीवन।
उसी में बिगडता जग जीवन।
S.Anandakrishnan, M.A, M.Ed.,
Retired Head Master of Hindu Higher Secondary School, Chennai, India
வெள்ளி, மார்ச் 11, 2016
सूर्य प्रकाश
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