வெள்ளி, ஜனவரி 20, 2012

spiritual fear(hindhi) only source

आध्यात्मिक भय
मनुष्य जन्म चमत्कार से भरा हुआ है.एक अरूप दो बिंदु   का मिश्रण  तीन किलो के शिशु के रूप में रोता हुआ जन्म लेता है.उसके आकार में दिन ब दिन विकार होता है. उसके बाल बढ़ते हैं.वज़न बढ़ता है. स्वर बदलता है.विचार उम्र के साथ बदलते हैं.उसके जीवन में तेरह से उन्नीस तक की उम्र अति मुख्या और मानसिक
 संघर्ष   का या भावी जीवन का निर्णय काल होते है.शोध और अनुभव से यह स्पष्ट स्थापित हुआ है कि
माँ के गर्भ काल से ही उसको ज्ञान ग्रहण करने की शक्ति विद्यमान होती है.इसलिए यह कहावत है कि
हों हार बिरवान के होत चीकने पात.
चोदः साल से ही स्त्री -पुरुष का आकर्षण ,एक दूसरे के शारीरिक आकर्षण शुरू हो जाता है.हामारे पूर्वज तो अति मेधावी हैं.अतः जीवन में संयम और ब्रह्मा चर्या पर जोर दिया है.उसके विकास में विघ्न डालनेवाली
 सहज कामवासना को वश में रखने  के लिए ईश्वरीय जागरण पर जोर दिया था.आध्यात्मिक
  भय मनुष्य कोनेक मार्ग पर ले चलने का सूत्र है. सत-पथ पर मनुष्य को आगे  ले oचलने का एक मात्र
  साधन  आध्यात्मक मार्ग है.
तेरह साल में ही प्रेम ,प्रेम के मार्ग, प्रेम न करना मनुष्यता का अपमान,इस उम्र में न प्रेम न करना
 मनुष्य जीवन  का कलंक  आदि बातें चित्रपट द्वारा प्रचार कर रहे हैं.वे अपने लाभ केलिए जन मानस में विष वृक्ष का बीज बो रहे है.इस कारण आत्मा हत्याएं,तलाक,शांति हीन वैवाहिक जीवन,उसके कारण खून,
अपराध,पति-पत्नी पर संदेह ,दोनों का अलग रहना,बच्चों के मन में बेचैनी आदि प्रदूषित वातावरण
समाज में बढ़ रहे हैं.
समाज को इस बुरी हालत से बचाने और मनुष्य मन में सद्विचार बसाने और मन को काबू में रखने

एक मात्र मार्ग  "आध्यात्मक मार्ग "है.


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