आज की खबर है ,
चेन्नई में मधुशाला के विरुद्ध जो आन्दोलन चला ,
उसमें कैद किये 15 छात्रों में 12 कैदी छात्र नहीं हैं.
आज ही नहीं ,जब जब छात्र आन्दोलन होता है,
तब तब बदमाश ,राजनैतिक गुंडों ,बदमाशों ने ही सार्वजनिक संपत्ती और निजी साम्पपत्ती का नाश करते हैं.
यह बात प्रत्यक्ष है.
फिर भी हमारे देश की कानून व्यवस्था कठोर न होने से यह बढ़ती जा रही है.
भारतीय कानून के अनुसार आत्महत्या करना गैरक़ानूनी विषय है.
कानून के विरुद्ध एक राजनैतिक नेता के समर्थन में जितने लोगों ने आत्महत्या की हैं ,
उस दल की नेत्री ने हर व्यक्ति के आत्महया के परिवारवालों को तीन लाख के हिसाब से दिया गया हैं.
अपने दल अपने पद बचाने,
ऐसे आत्महत्या का प्रोत्साहन देना केवल निर्दय व्याहार ही नहीं ,
इतने लाख रुपये कैसे मिले ?
यह राजा हजारों सिपाहियों को मारकर एक लड़की अपनाता था;
उनकी विधवाओं पर ध्यान नहीं ;
वैसे ही लोकतंत्र में भी आत्महत्या का प्रोत्साहन धन देना,
ऐसी नेता की प्रशंसा करना कैसे न्याय स्थापित करेगा.
कोई भी इस बात पर चर्चा नहीं करते.
यह लोकतंत्र या निर्दयी तंत्र.
ज़रा देश के हितैषियों !समझाइये.
jai hind .
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