मनुष्य  अर्थ  के लिए अपने जीवन को अनर्थ बना देता है. अर्थ के अभाव  में उसका जीवन हीन माना जाता है. वास्तव  में कितने लोग अर्थ लेकर जन्म लेते हैं . ज़रा  सोचिये.
रमण महर्षि विश्वविख्यात महात्मा थे. संसार में उनकी संपत्ति केवल एक कौपीन था .
सिवा तिरुवन्ना मलै  के वे और नहीं गये। उनके दर्शन करने और उनकी देववाणी सुनने संसार भर के लोग आये थे. 
अर्थ के पीछे घूमने  के बदले जीवन को सार्थक बनाने में निहित है मनुष्यता .
मनुष्यता अमर है  जिसके बल पर  ही शंकर,रामानुजर, बुद्ध ,जैन,मुहम्मद,ईसा, नानक ,साईं बाबा आदि संत विश्ववन्द्य बन गये. मोहनदास करमचंद गाँधी,अब्रहम्लिंकन ,जार्ज वाशिंगटन आदि नेता स्तुत्य बने. 
एरिस्टाटिल ,साक्रतिस,कन्फुचियस  आदि प्रशंसा के योग्य बने। 
नाटककार और लेखक  कालिदास,वल्लुवर,शेक्स्फियर ,प्रेमचंद,ठाकुर,आदि विश्व के आदर्श बने. 
 हमें कम से कम अपनी योग्यता के बल पर इन्सानियत  निभाना है. अपनी योग्यता के बल पर अपने छोटे दायरे में कुछ करके दिखाना है. वह कार्य अपने दायरे में हम को ज़रा बड़ा बनाएगा .
अर्थ लौकिकता है  तो अर्थ रहित अर्थसहित जीना  मनुष्यता है. वह हमें ज़रूर ऊंचा बनाएगा .
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