संसार में सच -झूठ , मीठा-कडुवा,गर्म -ठंडा ,स्त्री -पुरुष ,आस्तिक -नास्तिक ,न्याय -अन्याय सब में द्वित्व .
जन्म -मरण ,स्वर्ग-नरक ,पाप -पुण्य.
पर भगवान है एक.
भगवान ने बुद्धि दी तो उन्होंने भगवान को बाँटा.
आपस में मरने मारने ,लड़ने -झगड़ने लगे तो
अनुशासित जीवन जीने ,प्रेम से रहने ईश्वर के सन्देश वाहक के रूप में
ऋषि -मुनि ,पैगम्बर ,देवदूत को भेजा.
अमृत -विष के सामान स्वार्थ -निस्वार्थ को बनाया .
परोपकार की नसीहतें भेजी.
दान -धर्म का महत्त्व समझाये.
लेकिन स्वार्थ की माया और अहंकार की भावना ने
सम्प्रदायों को टुकड़े करके
धार्मिक कट्टरता को उत्पन्न किया.
परिणाम स्वरुप अब हो गए कई भगवान.
अब धर्म बने अनेक.
जातियाँ बन कई अनेक.
सभी धर्मो में शाखाएं बन गयी;
एक प्रेम को माना तो दूसरा ज्ञान को.
एक ने राम को माना,एक ने कृष्ण को .
एक ने अल्ला को तो दुसरे ने ईसा मसीह को.
परिणाम संसार में बेचैनी छा गयी.
लोग कटने-काटने में लग रहे हैं.
कई प्रकार के ज्ञान मिलने पर भी मनुष्य अज्ञानी ही रहता है धार्मिक विषय पर.
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